वीरों का कैसा हो बसंत
Posted अगस्त 11, 2008
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रचनाकार: सुभद्रा कुमारी चौहान |
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आ रही हिमालय से पुकार |
है उदधि गरजता बार बार |
प्राची पश्चिम भू नभ अपार |
सब पूछ रहे हैं दिग-दिगन्त- |
वीरों का कैसा हो बसन्त।। |
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फूली सरसों ने दिया रंग |
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग |
वधु वसुधा पुलकित अंग अंग |
है वीर देश में किन्तु कन्त- |
वीरों का कैसा हो बसन्त।। |
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भर रही कोकिला इधर तान |
मारू बाजे पर उधर गान |
है रंग और रण का विधान |
मिलने को आए हैं आदि अन्त- |
वीरों का कैसा हो बसन्त।। |
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गलबांहें हों या हो कृपाण |
चलचितवन हो या धनुषबाण |
हो रसविलास या दलितत्राण |
अब यही समस्या है दुरन्त- |
वीरों का कैसा हो बसन्त।। |
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कह दे अतीत अब मौन त्याग |
लंके तुझमें क्यों लगी आग |
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग |
बतला अपने अनुभव अनन्त- |
वीरों का कैसा हो बसन्त।। |
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हल्दीघाटी के शिला खण्ड |
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचण्ड |
राणा ताना का कर घमण्ड |
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलन्त- |
वीरों का कैसा हो बसन्त।। |
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भूषण अथवा कवि चन्द नहीं |
बिजली भर दे वह छन्द नहीं |
है कलम बंधी स्वच्छन्द नहीं |
फिर हमें बताए कौन हन्त- |
वीरों का कैसा हो बसन्त। |
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